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नज़्म
ये क्या मुमकिन नहीं तू आ के ख़ुद अब इस का दरमाँ कर
फ़ज़ा-ए-दहर में कुछ बरहमी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हुए अहरार-ए-मिल्लत जादा-पैमा किस तजम्मुल से
तमाशाई शिगाफ़-ए-दर से हैं सदियों के ज़िंदानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हड्डियाँ पिस कर बनें ग़ाज़ा उरूस-ए-हिन्द का
हुस्न फिर हो जाए कुछ ताज़ा उरूस-ए-हिन्द का
अल्ताफ़ मशहदी
नज़्म
शहीदान-ए-वफ़ा के क़तरा-ए-ख़ूँ काम आएँगे
उरूस-ए-मस्जिद-ए-ज़ेबा को अफ़्शाँ की ज़रूरत है
शिबली नोमानी
नज़्म
रू-ए-ज़ेबा-ए-उरूस-ए-फ़त्ह पुर ग़ाज़ा करें
मिल के गाएँ राम के गुन दिल में हो जोश-ए-सुरूर
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
नज़्म
सीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूर
जज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मैं उस आलिम-तरीन-ए-दहर की फ़िक्रत का मुनकिर था
मैं फ़सताई था जाहिल था और मंतिक़ का माहिर था
जौन एलिया
नज़्म
कभी मिला न मिलेगा किसी का नक़्श-ए-पा
असीर-ए-सैल-ए-गुमाँ है उरूस-ए-उम्र-ए-रवाँ