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नज़्म
परे है चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम से मंज़िल मुसलमाँ की
सितारे जिस की गर्द-ए-राह हों वो कारवाँ तो है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साकिनान-ए-अर्श-ए-आज़म की तमन्नाओं का ख़ूँ
इस की बर्बादी पे आज आमादा है वो कारसाज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोहब्बत ही वो मंज़िल है कि मंज़िल भी है सहरा भी
जरस भी कारवाँ भी राहबर भी राहज़न भी है