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नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
ख़ास तरह की सोच थी जिस में सीधी बात गँवा दी
छोटे छोटे वहमों ही में सारी उम्र बिता दी
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
डाकुओं के दौर में परहेज़-गारी जुर्म है
जब हुकूमत ख़ाम हो तो पुख़्ता-कारी जुर्म है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
निज़ाम-ए-चर्ख़ में देखेंगे इक तग़य्युर-ए-ख़ास
सुकून-ए-दहर में इक इज़्तिराब देखेंगे