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नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
या नुमायाँ बाम-ए-गर्दूं से जबीन-ए-जिब्रईल
वो सुकूत-ए-शाम-ए-सहरा में ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़त्म हो जाएगा लेकिन इम्तिहाँ का दौर भी
हैं पस-ए-नौह पर्दा-ए-गर्दूं अभी दौर और भी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दामन पे जिन के गर्द भी उड़ कर नहीं पड़ी
मारी न जिन को ख़्वाब में भी फूल की छड़ी
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
तेरी ही गर्दन-ए-रंगीं में हैं बाँहें अपनी
तेरे ही इश्क़ में हैं सुब्ह की आहें अपनी
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अब्बास ताबिश
नज़्म
वो 'भगत-सिंह' अब भी जिस के ग़म में दिल नाशाद है
उस की गर्दन में जो डाला था वो फंदा याद है