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नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मंज़ूर था जो माँ की ज़ियारत का इंतिज़ाम
दामन से अश्क पोंछ के दिल से किया कलाम
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
आज से ऐ मज़दूर किसानो मेरे गीत तुम्हारे हैं
फ़ाक़ा-कश इंसानो मेरे जोग-बहाग तुम्हारे हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
लेकिन जिन कानों के छेद अभी भरना ही शुरूअ हुए हों
जिन के जोग को ताज़ा-ताज़ा ज़ंग लगा हो
आकाश 'अर्श'
नज़्म
न जाने कब से ख़यालों में अपने महव खड़ी है
वो इक सखी जो नज़ाकत में मोतिया की कली है