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नज़्म
फिर सर पर अब्र-ए-दौर-ए-जुनूँ है घिरा हुआ
फिर दिल में बू-ए-ज़ुल्फ़ परेशाँ है क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ऐ वतन जोश है फिर क़ुव्वत-ए-ईमानी में
ख़ौफ़ क्या दिल को सफ़ीना है जो तुग़्यानी में
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रोज़ वहशत मुझे सहरा की तरफ़ लाती है
सर हो और जोश-ए-जुनूँ संग हो और छाती हो
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
नज़्म
क़ैद भी कर दें तो हम को राह पर लाएँगे क्या
ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जाएँगे क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आ रही हैं अब्र से उन की सदाएँ 'जोश' 'जोश'
ऐ ख़ुदा अब क्या करूँ बार-ए-ख़ुदा अब क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ज़ोफ़ से आँखों के नीचे तितलियाँ फिरती हुई
औज-ए-ख़ुद्दारी से दिल पर बिजलियाँ गिरती हुई
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रहमतों से जोश में आने की ख़्वाहिश क्या करें
ख़ुद सरापा क़हत हैं उम्मीद-ए-बारिश क्या करें
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आज ख़ुद मुझ पे मिरा जोश-ए-जुनूँ हँसता है
आज मैं इश्क़-ए-बला-ख़ेज़ पे शर्मिंदा हूँ