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नज़्म
ये शाख़-सार के झूलों में पेंग पड़ते हुए
ये लाखों पत्तियों का नाचना ये रक़्स-ए-नबात
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मैं ने इक पेड़ पे जो नाम लिखा था अपना
कुछ दिनों ज़ख़्म के मानिंद वो ताज़ा होगा
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मीराजी
नज़्म
हल्की टोपी सर पे रखते हैं तो चकराता है सर
और जूते की तरफ़ बढ़िए तो झुक जाता है सर