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नज़्म
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
है मिरी जुरअत से मुश्त-ए-ख़ाक में ज़ौक़-ए-नुमू
मेरे फ़ित्ने जामा-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद का तार-ओ-पू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जबीन-ए-कज-कुलाही ख़ाक पर ख़म हम भी देखेंगे
मुकाफ़ात-ए-अमल तारीख़-ए-इंसाँ की रिवायत है