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नज़्म
चादरें माल-ए-ग़नीमत में जो अब के आईं
सेहन-ए-मस्जिद में वो तक़्सीम हुईं सब के हुज़ूर
शिबली नोमानी
नज़्म
मुसलसल इरतक़ा-ए-आदमियत इस से मज़हर है
ब-क़ैद-ए-नुत्क़-ए-'माजिद' रहबर-ए-अक़्वाम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
वही हैं फ़ासले और क़ाफ़िले फिर भी रवाँ हैं
वही हैं सिलसिले और दाएरे भी बे-कराँ हैं
यावर जव्वाद माजिद
नज़्म
जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब
ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्या मंदर मस्जिद ताल कुआँ क्या खेती बाड़ी फूल चमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मैं ने तोड़ा मस्जिद-ओ-दैर-ओ-कलीसा का फ़ुसूँ
मैं ने नादारों को सिखलाया सबक़ तक़दीर का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस की पीरी में है मानिंद-ए-सहर रंग-ए-शबाब
कह रहा है मुझ से ऐ जूया-ए-असरार-ए-अज़ल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कितनी मुश्किल ज़िंदगी है किस क़दर आसाँ है मौत
गुलशन-ए-हस्ती में मानिंद-ए-नसीम अर्ज़ां है मौत
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रियाज़-ए-दहर में मानिंद-ए-गुल रहे ख़ंदाँ
कि है अज़ीज़-तर अज़-जाँ वो जान-ए-जाँ मुझ को