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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब
ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
देख मिरी जाँ कह गए बाहू कौन दिलों की जाने 'हू'
बस्ती बस्ती सहरा सहरा लाखों करें दिवाने 'हू'
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ये रुपहली छाँव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़ी का तसव्वुर जैसे आशिक़ का ख़याल