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नज़्म
तख़्त-ए-फ़ग़्फ़ूर भी उन का था सरीर-ए-कए भी
यूँ ही बातें हैं कि तुम में वो हमियत है भी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हमेशा से बपा इक जंग है हम उस में क़ाएम हैं
हमारी जंग ख़ैर ओ शर के बिस्तर की है ज़ाईदा
जौन एलिया
नज़्म
कितनी सदियों से ये वहशत का चलन जारी है
कितनी सदियों से है क़ाएम ये गुनाहों का रिवाज
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरी महफ़िल को ख़ुदा रक्खे अबद तक क़ाएम
हम तो मेहमाँ हैं घड़ी भर के हमारा क्या है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
माँ बाप मुँह ही देखते थे जिन का हर घड़ी
क़ाएम थीं जिन के दम से उमीदें बड़ी बड़ी