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नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
रूह क्या होती है इस से उन्हें मतलब ही नहीं
वो तो बस तन के तक़ाज़ों का कहा मानते हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इक शाम जो उस को बुलवाया कुछ समझाया बेचारे ने
उस रात ये क़िस्सा पाक किया कुछ खा ही लिया दुखयारे ने
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
देखता है तू फ़क़त साहिल से रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर
कौन तूफ़ाँ के तमांचे खा रहा है मैं कि तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये तुम ने ठीक कहा है तुम्हें मिला न करूँ
मगर मुझे ये बता दो कि क्यूँ उदास हो तुम
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कितनी आँखों को नज़र खा गई बद-ख़्वाहों की
ख़्वाब कितने तिरी शह-राहों में संगसार हुए