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नज़्म
उठ रही है कहीं क़ुर्बत से तिरी साँस की आँच
अपनी ख़ुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
विसाल-वा'दों की चंद चिंगारियों को साँसों की आँच दे कर
शरीर शो'लों की सर-कशी के तमाम तेवर
मोहसिन नक़वी
नज़्म
तुम्हारी हर ग़ज़ल में मीर का अंदाज़ मिलता है
हर इक मिसरे से जैसे धीमी धीमी आँच उठती है