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नज़्म
दिखा वो हुस्न-ए-आलम-सोज़ अपनी चश्म-ए-पुर-नम को
जो तड़पाता है परवाने को रुलवाता है शबनम को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आलम-ए-सोज़-ओ-साज़ में वस्ल से बढ़ के है फ़िराक़
वस्ल में मर्ग-ए-आरज़ू! हिज्र में ल़ज़्जत-ए-तलब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
है मिज़ाज उस वक़्त कुछ बिगड़ा हुआ सय्याद का
ऐ असीरान-ए-क़फ़स मौक़ा नहीं फ़रियाद का
राज्य बहादुर सकसेना औज
नज़्म
तुम चमन-ज़ाद हो फ़ितरत के क़रीं रहते हो
दिल ये कहता है कि तुम महरम-ए-असरार भी हो
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
नज़्म
मैं आहें भर नहीं सकता कि नग़्मे गा नहीं सकता
सकूँ लेकिन मिरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तिरे इल्म ओ मोहब्बत की नहीं है इंतिहा कोई
नहीं है तुझ से बढ़ कर साज़-ए-फ़ितरत में नवा कोई
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ सती ऐ जल्वा-गाह-ए-शोला-ए-तनवीर-ए-हुस्न
पाक-दामानी का नक़्शा है तिरी तस्वीर-ए-हुस्न
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
ज़ब्त पर क़ुदरत है तुझ को ये कि तू ख़ामोश है
तेरे सीने में अगरचे यास-ओ-ग़म का जोश है
साक़िब कानपुरी
नज़्म
खेलता था जब लड़कपन से तिरा रंगीं शबाब
हट रही थी माह-ए-आलम-ताब के रुख़ से नक़्क़ाब