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नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जहान-ए-आब-ओ-गिल से आलम-ए-जावेद की ख़ातिर
नबुव्वत साथ जिस को ले गई वो अरमुग़ाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ दिल पहले भी तन्हा थे, ऐ दिल हम तन्हा आज भी हैं
और उन ज़ख़्मों और दाग़ों से अब अपनी बातें होती हैं
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
घिरा हुआ है अब्र माहताब ढूँढता हूँ मैं
जिन्हें सहर निगल गई, वो ख़्वाब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
नज़्म
इस्लाम के इस बुत-ख़ाने में असनाम भी हैं और आज़र भी
तहज़ीब के इस मय-ख़ाने में शमशीर भी है और साग़र भी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
सारे ख़्वाबों का गला घूँट दिया है मैं ने
अब न लहकेगी किसी शाख़ पे फूलों की हिना