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नज़्म
मुझे अब चला है पता कि मोहब्बत न कमज़ोर थी आप की शैख़ साहब
बुलावे पे नासिर के यूँ चल दिए आप उठ कर
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
मोहब्बत का वो बन कर अब्र सारे देस पर छाएँ
मोहब्बत ही के मोती बन के हर जानिब बरस जाएँ
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा