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नज़्म
ये दस्तूर-ए-ज़बाँ-बंदी है कैसा तेरी महफ़िल में
यहाँ तो बात करने को तरसती है ज़बाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुम डर में बच्चे जन्ती हो इसी लिए आज तुम्हारी कोई नस्ल नहीं
तुम जिस्म के एक बंद से पुकारी जाती हो
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
बंदर को सेहरा बाँध के हम दूल्हा न बनाएँगे अम्मी
अब घूँघट काढ़ बंदरिया को डोली में बिठाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
हर एक मकाँ में सर्दी ने आ बाँध दिया हो ये चक्कर
जो हर दम कप-कप होती हो हर आन कड़ाकड़ और थर-थर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
घंटी बाँध के चूहे जब बिल्ली से दौड़ लगाते थे
पेट पे दोनों हाथ बजा कर सब क़व्वाली गाते थे