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नज़्म
उस के बहके क़दम करें धरती के दिल से बातें
गली गली में चौराहे पर भीड़ हो या हो तन्हाई
नियाज़ हैदर
नज़्म
क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर
शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुम्हें बहका न पाए और बैरूनी न कर डाले
मैं सारी ज़िंदगी के दुख भुगत कर तुम से कहता हूँ