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नज़्म
न मिरा मकाँ ही बदल गया न तिरा पता कोई और है
मिरी राह फिर भी है मुख़्तलिफ़ तिरा रास्ता कोई और है
दिलावर फ़िगार
नज़्म
चराग़-ए-इल्म रौशन है हक़ीक़त की हवाओं पर
हुकूमत कर रहा है एक गोशे से फ़ज़ाओं पर
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
फ़रोग़-ए-चश्म है तस्कीन-ए-दिल है बे-गुमाँ उर्दू
हर इक आलम में है गोया बहार-ए-गुल-फ़िशाँ उर्दू
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
दिखती हड्डियाँ कहती है आराम करो अब
दिल कहता है अभी नहीं अभी तो काम पड़ा है सब
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
ये रक़्स-ए-आफ़रीनश है कि शोर-ए-मर्ग है ऐ दिल
हवा कुछ इस तरह पेड़ों से मिल मिल कर गुज़रती है
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम