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नज़्म
बंद आँखों में बहारों के जवाँ ख़्वाब बसाए
ये मिरे प्यार का मदफ़न ही नहीं है तन्हा
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
'हाफ़िज़' के तरन्नुम को बसा क़ल्ब-ओ-नज़र में
'रूमी' के तफ़क्कुर को सजा क़ल्ब-ओ-नज़र में
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
अलीम जाने वो इल्म के कौन से सफ़ीनों का ना-ख़ुदा था
मुझे तो बस सिर्फ़ ये ख़बर है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मिरी तस्वीर की आँखों में बसा है इक शहर
इस में हैं ऊँचे महल जो मैं बना सकता था