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नज़्म
किस क़दर तुम पे गिराँ सुब्ह की बेदारी है
हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तिरे माथे का टीका मर्द की क़िस्मत का तारा है
अगर तू साज़-ए-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मौज के दामन में फिर उस को छुपा देती है ये
कितनी बेदर्दी से नक़्श अपना मिटा देती है ये
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इक भिकारी था उसी पहली किरन का जो लरज़ते हुए आती है जगा देती है
सोए सायों को उठा देती है बेदारी में
मीराजी
नज़्म
जहाँ में हर तरफ़ है इल्म ही की गर्म-बाज़ारी
ज़मीं से आसमाँ तक बस इसी का फ़ैज़ है जारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
तेरी फ़ुर्क़त दिल-ए-मायूस पे इक तुर्फ़ा सितम
तेरी फ़ुर्क़त सबब-ए-काविश-ओ-बेदारी-ए-ग़म
शकील बदायूनी
नज़्म
शेर क्या है नीम बेदारी में बहना मौज का
बर्ग-ए-गुल पर नींद में शबनम के गिरने की सदा
जोश मलीहाबादी
नज़्म
दिल पे क्यूँ कर फ़ाश हो जाते हैं आज़ादी के राज़
छेड़ते हैं किस तरह महफ़िल में बेदारी का साज़