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नज़्म
सीनों से लग रही हैं जो हैं पिया की प्यारी
छाती फटे है उन की जो हैं बिरह की मारी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
घटा है घनघोर रात काली फ़ज़ा में बिजली चमक रही है
मिलन का सीना उभार पर है बिरह की छाती धड़क रही है
नज़ीर बनारसी
नज़्म
ध्यान के अंदर पथ पे बीती घड़ियाँ उड़ती आएँ
मैं सीता बन-बास को निकली बिरह की अग्नी जलाए