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नज़्म
ये चर्ख़-ए-जब्र के दव्वार-ए-मुमकिन की है गिरवीदा
लड़ाई के लिए मैदान और लश्कर नहीं लाज़िम
जौन एलिया
नज़्म
ज़मीर-ए-लाला में रौशन चराग़-ए-आरज़ू कर दे
चमन के ज़र्रे ज़र्रे को शहीद-ए-जुस्तुजू कर दे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मरज़ कहते हैं सब इस को ये है लेकिन मरज़ ऐसा
छुपा जिस में इलाज-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-कुहन भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दश्त के काम-ओ-दहन को दिन की तल्ख़ी से फ़राग़
दूर दरिया के किनारे धुँदले धुँदले से चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
इक दफ़्तर-ए-मज़ालिम-ए-चर्ख़-ए-कुहन खुला
वा था दहान-ए-ज़ख़्म कि बाब-ए-सुख़न खुला
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
निज़ाम-ए-चर्ख़ में देखेंगे इक तग़य्युर-ए-ख़ास
सुकून-ए-दहर में इक इज़्तिराब देखेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
हम को गर तू ने रुलाया तो रुलाया ऐ चर्ख़
हम पे ग़ैरों को तो ज़ालिम न हँसाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
उट्ठे हैं जिस की गोद से आज़र वो क़ौम है
तोड़े हैं जिस ने चर्ख़ से अख़्तर वो क़ौम है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इसी के ज़ोम में है जर्मनी चर्ख़-ए-तफ़ाख़ुर पर
इसी के ज़ोर पर मिर्रीख़ का हम-सर है जापानी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
ग़लग़ला तेरी सताइश का हो ता-चर्ख़-ए-कुहन
और तेरे जाँ-निसारों के हो लब पर ये सुख़न