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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
तुम ने उस के हर अदा से रंग की मौजें निचोड़ी हैं
तुम्हें तो टूट कर चाहा गया चेहरों के मेले में
मोहसिन नक़वी
नज़्म
मिरे ख़ुदाया मैं ज़िंदगी के अज़ाब लिक्खूँ कि ख़्वाब लिक्खूँ
ये मेरा चेहरा ये मेरी आँखें
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
सेह-ए-ज़िंदाँ में रफ़ीक़ों के सुनहरे चेहरे
सतह-ए-ज़ुल्मत से दमकते हुए उभरे कम कम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कितने ज़ेहनों का लहू कितनी निगाहों का अरक़
कितने चेहरों की हया कितनी जबीनों की शफ़क़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फुर्तियाँ चूहों की हैं बिल्ली की तर्रारी के साथ
आप रोकें ख़्वाह कितनी ही सितमगारी के साथ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अभी तो फ़ाक़ा-कश इंसान से आँखें मिलाना है
अभी झुलसे हुए चेहरों पे अश्क-ए-ख़ूँ बहाना है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अब वो आँखों के शगूफ़े हैं न चेहरों के गुलाब
एक मनहूस उदासी है कि मिटती ही नहीं