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नज़्म
क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ ये ताज़ा सितम ईजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर बे-दाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
गुड़गुड़ाती हुई पान की पीकों में वो दाद वो वाह वा
चंद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा से कुछ टाट के पर्दे
गुलज़ार
नज़्म
क्यूँ दाद-ए-ग़म हमीं ने तलब की बुरा किया
हम से जहाँ में कुश्ता-ए-ग़म और क्या न थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझे जाना है इक दिन तेरी बज़्म-ए-नाज़ से आख़िर
अभी फिर दर्द टपकेगा मिरी आवाज़ से आख़िर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मौजों की तपिश क्या है फ़क़त ज़ौक़-ए-तलब है
पिंहाँ जो सदफ़ में है वो दौलत है ख़ुदा-दाद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वहदत की हिफ़ाज़त नहीं बे-क़ुव्वत-ए-बाज़ू
आती नहीं कुछ काम यहाँ 'अक़्ल-ए-ख़ुदा-दाद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
सूखा चेहरा दहक़ानों का, ज़ख़्मी पीठें मज़दूरों की
वो भूखों के अन-दाता हैं, हक़ उन का है बे-दाद करें