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नज़्म
ज़र दाम-दिरम का भांडा है बंदूक़ सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया जो मुल्कों मुल्कों हांडा है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उख़ुव्वत के वो दरिया थे मोहब्बत के वो साहिल थे
अहिंसा के वो दाई' थे वो यक-जेहती के क़ाइल थे
कँवल डिबाइवी
नज़्म
मुझे मौहूम लफ़्ज़ों का शनासाई नहीं बनना
मुझे इस कार-ए-पुर-असरार का दाई' नहीं बनना
प्रेम कुमार नज़र
नज़्म
हज़ारों दर्स-गाहें दाई-ए-अक़दार-ए-इंसाँ हैं
सियह सड़कों पे कारें हैं फ़ज़ाओं में हैं तय्यारे
सहर अंसारी
नज़्म
तू ने देखी है वो पेशानी वो रुख़्सार वो होंट
ज़िंदगी जिन के तसव्वुर में लुटा दी हम ने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैं
गिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़