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नज़्म
मेरे कान में ये नवा-ए-हज़ीं यूँ थी जैसे
किसी डूबते शख़्स को ज़ेर-ऐ-गिर्दाब कोई पुकारे!
नून मीम राशिद
नज़्म
मगर एहसास अपनों सा वो अनजाने दिलाते हैं
वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
तुझ से शफ़क़त भी मिली तुझ से मोहब्बत भी मिली
दौलत-ए-इल्म मिली मुझ को शराफ़त भी मिली
मुनव्वर राना
नज़्म
उफ़ुक़ पे डूबते दिन की झपकती हैं आँखें
ख़मोश सोज़-ए-दरूँ से सुलग रही है ये शाम!