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नज़्म
परे है चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम से मंज़िल मुसलमाँ की
सितारे जिस की गर्द-ए-राह हों वो कारवाँ तो है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तो अपने क़दमों में देख लेना मैं गर्द होती मसाफ़तों में तुम्हें मिलूँगा
कहीं पे रौशन चराग़ देखो
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
परेशाँ हूँ मैं मुश्त-ए-ख़ाक लेकिन कुछ नहीं खुलता
सिकंदर हूँ कि आईना हूँ या गर्द-ए-कुदूरत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गर्द से पाक है हवा बर्ग-ए-नख़ील धुल गए
रेग-ए-नवाह-ए-काज़िमा नर्म है मिस्ल-ए-पर्नियाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गर्द-ओ-ग़ुबार याँ का ख़िलअत है अपने तन को
मर कर भी चाहते हैं ख़ाक-ए-वतन कफ़न को
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
कितने माथों के अभी सर्द हैं रंगीन गुलाब
गर्द अफ़्शाँ हैं अभी गेसू-ए-पुर-ख़म कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
अजब नहीं मिरे लफ़्ज़ मुझ को मुआ'फ़ कर दें
हवा-ओ-हिर्स-ओ-हवस की सब गर्द साफ़ कर दें