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नज़्म
किसी बाब-ए-आतिश-ज़दा पर खड़ा मुस्कुराने लगा है
कहीं हिज्र की साअतें गिनते गिनते मुझे नींद आई हुई है
अहमद ज़फ़र
नज़्म
हँसी में छुपा इजतिमाई तअस्सुफ़ दिखाती है
हम बात करने के मौज़ूअ' पोरों पे गिनते हैं
ख़ुमार मीरज़ादा
नज़्म
अमित गोस्वामी
नज़्म
अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के