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नज़्म
मगर पहले कभी तुम से मिरा कुछ सिलसिला तो था
गुमाँ में मेरे शायद इक कोई ग़ुंचा खिला तो था
जौन एलिया
नज़्म
हिम्मत-ए-आली तो दरिया भी नहीं करती क़ुबूल
ग़ुंचा साँ ग़ाफ़िल तिरे दामन में शबनम कब तलक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शाहिद-ए-मज़्मूँ तसद्दुक़ है तिरे अंदाज़ पर
ख़ंदा-ज़न है ग़ुंचा-ए-दिल्ली गुल-ए-शीराज़ पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दाग़-ए-गुल-ओ-ग़ुंचा के बदले महकी हुई ख़ुश्बू लेंगे
मिली ख़लिश पर ज़ख़्म-ए-जिगर की इस आबाद ख़राबे में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
मुझे उस दश्त की इक इक कली से प्यार करने दे
जहाँ इक दिन वो मिस्ल-ए-गुंचा-ए-मस्ताना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
इस गिरानी में भला क्या ग़ुंचा-ए-ईमाँ खिले
जौ के दाने सख़्त हैं ताँबे के सिक्के पिल-पिले
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अब्र-ए-रहमत दामन-अज़-गलज़ार-ए-मन बर्चीद-ओ-रफ़त
अंदकै बर-ग़ुंचा हाए आरज़ू बारीद-ओ-रफ़्त