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नज़्म
मेरे सीने पर मगर रखी हुई शमशीर सी
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हूक उठती है ये सुन मेरे दिल-ए-नाकाम में
पलटनें कुफ़्फ़ार की हों ख़ाना-ए-इस्लाम में
शहज़ादी कुलसूम
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
वो हस्ती की सरहद-ए-आख़िर हुआ जहाँ हर सफ़र तमाम
बेबस है इंसाँ बेबस है तकती रह गई रोती शाम
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
देखो वो जाती है रिश्वत से ख़रीदी हुई कार
सेहन-ए-गुलशन में हो जैसे गुज़राँ मौज-ए-बहार
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
किस की याद चमक उट्ठी है धुँदले ख़ाके हुए उजागर
यूँही चंद पुरानी क़ब्रें खोद रहा हूँ तन्हा बैठा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कोई है मादर-ए-बे-कस का हक़ पहचानने वाला
बहुत हैं जानने वाले कोई है मानने वाला