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नज़्म
रुलाता है तिरा नज़्ज़ारा ऐ हिन्दोस्ताँ मुझ को
कि इबरत-ख़ेज़ है तेरा फ़साना सब फ़सानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़्वाब-गह शाहों की है ये मंज़िल-ए-हसरत-फ़ज़ा
दीदा-ए-इबरत ख़िराज-ए-अश्क-ए-गुल-गूँ कर अदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चश्म-ए-हक़-बीं के लिए इबरत के नज़्ज़ारे मिले
हस्ती-ए-इंसान पे जो ज़िंदगानी देख कर
मयकश अकबराबादी
नज़्म
सोज़िश-ए-ग़म से पिघल जा आह ऐ रेग-ए-रवाँ
ज़र्रे ज़र्रे में तेरे तस्वीर-ए-इबरत है निहाँ
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
गुज़िश्ता सदियों की तारीख़ का वरक़ है ये कोट
ख़रीदो इस को कि इबरत का इक सबक़ है ये कोट