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नज़्म
हुक़्क़ा सुराही जूतियाँ दौड़ें बग़ल में मार
काँधे पे रख के पालकी हैं दौड़ते कहार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हमें ज़ोफ़-ए-बसारत से कहाँ थी ताब-ए-नज़्ज़ारा
सिखाए उस के पर्दे ने हमें आदाब-ए-नज़ारा
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
तुझे ऐ दिल अदू को हो अगर चुभती हुई कहना
तो हर हर हर्फ़ में तेज़ी-ए-नोक-ए-ख़ार पैदा कर
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात