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नज़्म
उर्दू के तअ'ल्लुक़ से कुछ भेद नहीं खुलता
ये जश्न ये हंगामा ख़िदमत है कि साज़िश है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तर्बियत से तेरी में अंजुम का हम-क़िस्मत हुआ
घर मिरे अज्दाद का सरमाया-ए-इज़्ज़त हुआ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हर सुब्ह है ये ख़िदमत ख़ुर्शीद-ए-पुर-ज़िया की
किरनों से गूँधता है चोटी हिमालिया की
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
कहीं नहीं है कहीं भी नहीं लहू का सुराग़
न सर्फ़-ए-ख़िदमत-ए-शाहाँ कि ख़ूँ-बहा देते
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मैं ने ससुराल में हर शख़्स की इज़्ज़त की है
सास ससुरे नहीं ननदों की भी ख़िदमत की है
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
ये हवस ये चोर बाज़ारी ये महँगाई ये भाव
राई की क़ीमत हो जब पर्बत तो क्यूँ न आए ताव
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मशरिक़ी पतलूँ में थी ख़िदमत-गुज़ारी की उमंग
मग़रिबी शक्लों से शान-ए-ख़ुद-पसंदी आश्कार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
माँ-बाप की हम ने ख़िदमत की हम अव्वल-नंबर पास हुए
जी-जान से हम ने मेहनत की हम अव्वल-नंबर पास हुए
हसरत जयपुरी
नज़्म
ख़िदमत-ए-अग़्यार से फ़ुर्सत कोई पाता नहीं
सच है अपनों पर ग़ुलामों को तरस आता नहीं