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नज़्म
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हाए उन को भी ख़बर क्या कि वो इक ज़ख़्म-नसीब
ज़िंदगी के लिए निकला था जो राही बन कर
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
ख़ून-ए-जज़बात से शादाब किया बाग़-ए-सुख़न
फ़ितरतन शायर-ए-ख़ुद्दार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
जहाँ जज़्बात अहल-ए-दिल के ठुकराए न जाते हों
जहाँ बाग़ी न कहता हो कोई ख़ुद्दार इंसाँ को
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
फिर ज़रूरत है जवाँ मर्दों की ऐ मादर-ए-हिन्द
राणा-प्रताप से ख़ुद्दार बशर पैदा कर
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
सीना-ए-शाइर में पिन्हाँ जज़्बा-ए-ख़ुद्दार है
आँख भी रौशन है मेरी रूह भी बेदार है
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
फ़ज़ा-ए-क़ुदरत-ए-हक़ में सदा आबाद होता है
ख़ुदा की क़ुदरतों को देख कर दिल शाद होता है
नारायण दास पूरी
नज़्म
हाए उन को भी ख़बर क्या कि वो इक ज़ख़्म-नसीब
ज़िंदगी के लिए निकला था जो राही बन कर