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नज़्म
हर एक क़ुमक़ुमा यहाँ चराग़-ए-कोह-ए-तूर है
हर इक फ़ज़ा पे रंग है हर एक सम्त नूर है
अर्श मलसियानी
नज़्म
सुराग़ मेरे नूर का न कोह-ए-तूर पा सका
न मैं नज़र में आ सका न अक़्ल में समा सका
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
नज़र के जादू से जिस्म पत्थर
नज़र के पुर-ताब नूर से कोह-ए-तूर-ए-सीना भी रेज़ा रेज़ा
एजाज़ फ़ारूक़ी
नज़्म
इक दिया जो बेचता है माँगता है शम-ए-तूर
इक ज़रा से संग-रेज़े की है क़ीमत कोह-ए-नूर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
गोशा गोशा तेरा नूर-ए-अलम से मा'मूर है
ज़र्रा ज़र्रा हामिल-ए-नूर-ए-चराग़-ए-तूर है
अर्श मलसियानी
नज़्म
तेरा मस्कन अर्ज़-ए-दिल्ली रश्क-ए-हुस्न-ए-कोह-ए-क़ाफ़
चाँद-सूरज रोज़ तेरे गिर्द करते हैं तवाफ़