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नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
अक़ल्लीयत कहीं की हो तह-ए-ख़ंजर ही रहती है
हलाकत-ख़ेज़ हाथों के हज़ारों जब्र सहती है
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
न सुर्ख़ी-ए-लब-ए-खंजर न रंग-ए-नोक-ए-सिनाँ
न ख़ाक पर कोई धब्बा न बाम पर कोई दाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जब आई होली रंग-भरी सौ नाज़-ओ-अदा से मटक मटक
और घूँघट के पट खोल दिए वो रूप दिखला चमक चमक
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
फिर इत्तिसाल-ए-गर्दन-ओ-ख़ंजर है क्या कहूँ
फिर इख़्तिलात-ए-ज़ख़्म-ओ-नमक-दाँ है क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
उन से मिलने की तमन्ना दिल-ए-बेताब न कर
अहल-ए-दिल कुश्ता-ए-उफ़्ताद-ए-ज़माना हों जहाँ
बज़्म अंसारी
नज़्म
फिर दुहल करने लगे तशहीर-ए-इख़लास-ओ-वफ़ा
कुश्ता-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा का दिल जलाने के लिए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ढाल लेती है जिन्हें शायर की तरकीब-ए-अदब
ढल के गो वो गौहर-ए-ग़लताँ का पाती हैं लक़ब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आशिक़-ए-नाम-ए-वतन कुश्ता-ए-अरमान-ए-वफ़ा
मर्द-ए-मैदान-ए-वफ़ा जिस्म-ए-वफ़ा जान-ए-वफ़ा