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नज़्म
हो न ये फूल तो बुलबुल का तरन्नुम भी न हो
चमन-ए-दह्र में कलियों का तबस्सुम भी न हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उड़ा ली क़ुमरियों ने तूतियों ने अंदलीबों ने
चमन वालों ने मिल कर लूट ली तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फिर ये इंसाँ आँ सू-ए-अफ़्लाक है जिस की नज़र
क़ुदसियों से भी मक़ासिद में है जो पाकीज़ा-तर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हर आन यहाँ सहबा-ए-कुहन इक साग़र-ए-नौ में ढलती है
कलियों से हुस्न टपकता है फूलों से जवानी उबलती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
न जिस के दिल के दराँ कुंजियों से खोल सका
वो माँ मैं पैसे भी जिस के कभी चुरा न सका