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नज़्म
कभी 'मीर'-ओ-'दाग़' की शाइ'री भी मोआ'मला से हसीन थी
मगर अब जो शे'र में होता है वो मोआ'मला कोई और है
दिलावर फ़िगार
नज़्म
दरिया हैं 'मीर'-ओ-'ग़ालिब' हर लब पे जो रवाँ हैं
'फ़ैज़' ओ 'फ़िराक़' और 'दाग़' हर दिल पे हुक्मराँ हैं
फ़रहत एहसास
नज़्म
जो 'मीर'-ओ-'दर्द' की ग़ज़लें कभी हम को सुनाते थे
वही सरगोशियाँ मुझ से जो अक्सर करते रहते थे
असरा रिज़वी
नज़्म
ऐ ज़न-ए-नापाक फ़ित्रत-ए-पैकर-ए-मकर-ओ-रिया
दुश्मन-ए-मेहर-ओ-वफ़ा ग़ारत-गर-ए-शर्म-ओ-हया
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
नाज़ हो जिस को बहार-ए-मिस्र-ओ-शाम-ओ-रूम पर
सर-ज़मीन-ए-हिंद में देखे फ़ज़ा बरसात की
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
पढ़ा है 'मीर'-ओ-'ग़ालिब' 'इस्मत'-ओ-'मंटो' को भी मैं ने
ये रंगों में बसी हर दास्ताँ गोया लिखी मैं ने
ज़ेबुन्निसा ज़ेबी
नज़्म
मक्र-ओ-फ़रेब से जो करें ज़िंदगी बसर
सौ जाँ हज़ार दिल से हो क़ुर्बान हर बशर
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
नज़्म
नाज़ हो जिस को बहार-ए-मिस्र-ओ-शाम-ओ-रूम पर
सर-ज़मीन-ए-हिंद में देखे फ़ज़ा बरसात की