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नज़्म
तक़दीर के क़ाज़ी का ये फ़तवा है अज़ल से
है जुर्म-ए-ज़ईफ़ी की सज़ा मर्ग-ए-मुफ़ाजात!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐसा लगता है कि कुछ दिन और जीना है मुहाल
गर नहीं अपना तो बच्चों ही का कुछ कीजे ख़याल
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
क़ुर्बानी ऐसे हाल में अम्र-ए-मुहाल है
बकरा ''तमाम हल्क़ा-ए-दाम-ए-ख़याल है''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
खाए जाता है मुझे अब मिरे माज़ी का ख़याल
क्या मिरे जुर्म की पादाश है इस दर्जा मुहाल