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नज़्म
कोई अंदाज़ा कर सकता है उस के ज़ोर-ए-बाज़ू का
निगाह-ए-मर्द-ए-मोमिन से बदल जाती हैं तक़दीरें
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नीस्त पैग़मबर व-लेकिन दर बग़ल दारद किताब
क्या बताऊँ क्या है काफ़िर की निगाह-ए-पर्दा-सोज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरी निगाह-ए-नाज़ से दोनों मुराद पा गए
अक़्ल, ग़याब ओ जुस्तुजू! इश्क़, हुज़ूर ओ इज़्तिराब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
निगाह-ए-शौक़ की बेबाकियों पर मुस्कुरा देना
जुनूँ को दर्स-ए-तमकीं दे गईं नादानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हाए अब क्या हो गई हिन्दोस्ताँ की सर-ज़मीं
आह ऐ नज़्ज़ारा-आमोज़-ए-निगाह-ए-नुक्ता-बीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
निगाह-ए-शौक़ के साँचों में रोज़ ढलता हुआ
सुना है रावियों से दीदनी थी उस की उठान