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नज़्म
अब्र-ए-रहमत दामन-अज़-गलज़ार-ए-मन बर्चीद-ओ-रफ़त
अंदकै बर-ग़ुंचा हाए आरज़ू बारीद-ओ-रफ़्त
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पास था अपने क़ौल का जिस को तू ने कुछ उस का पास किया
आमद-ओ-रफ़्त-ए-देरीना का भूल के भी एहसास किया
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
करूँगा फ़तह कोई शाम तो मैं उतरूँगा उलझती साँस के कीकर से और
ख़्वाबों से रफ़्त-ओ-बूद के उस पार
ख़लील मामून
नज़्म
वहाँ ज़रा देर के लिए अपनी उम्र की रफ़्-ओ-बूद रोको
ज़मीं को लम्हों की बादशाहत में देखना चाहो
जीलानी कामरान
नज़्म
आसमाँ के पाँव पर महताब ओ अंजुम के सुजूद
और ज़मीं की रौनक़ों का वहम फ़िक्र-ए-रफ़्त-ओ-बूद
शहज़ाद अहमद
नज़्म
उम्र-ए-रफ़्ता के किसी ताक़ पे बिसरा हुआ दर्द
फिर से चाहे कि फ़रोज़ाँ हो तो हो जाने दो