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नज़्म
जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब
ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
और ये सफ़्फ़ाक मसीहा मिरे क़ब्ज़े में नहीं
इस जहाँ के किसी ज़ी-रूह के क़ब्ज़े में नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दिल ओ जाँ और आसाइश ये इक कौनी तमस्ख़ुर है
हुमुक़ की अबक़रिय्यत है सफ़ाहत का तफ़क्कुर है
जौन एलिया
नज़्म
मौत और ज़ीस्त की रोज़ाना सफ़-आराई में
हम पे क्या गुज़रेगी अज्दाद पे क्या गुज़री है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कहीं नहीं है कहीं भी नहीं लहू का सुराग़
न सर्फ़-ए-ख़िदमत-ए-शाहाँ कि ख़ूँ-बहा देते
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दरिंदे सर झुका देते हैं लोहा मान कर इस का
नज़र सफ़्फ़ाक-तर इस की नफ़स मकरुह-तर इस का
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सफ़ारत हो सिनेमा हो कि टीवी रेडियो सब में
सुरों का नश्शा है फ़िक्र-ओ-नज़र का जाम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
सदा दो अंजुम-ए-अफ़्लाक रक़्स फ़रमाएँ
बुतान-ए-काफ़िर-ओ-सफ़्फ़ाक रक़्स फ़रमाएँ