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नज़्म
किस को समझाएँ उसे खोदें तो फिर पाएँगे क्या
हम अगर रिश्वत नहीं लेंगे तो फिर खाएँगे क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हम कहाँ जाएँ कहें किस से कि नादार हैं हम
किस को समझाएँ ग़ुलामी के गुनहगार हैं हम
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
बच्चो, हम पर हँसने वालो, आओ, तुम्हें समझाएँ
जिस के लिए इस हाल को पहुँचे, उस का नाम बताएँ
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
ग़म और मायूसी के अँधियारों में कैसे चमकें
चाँद सितारे घर घर जा कर लोगों को समझाएँ
मोहम्मद असदुल्लाह
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आह लेकिन कौन जाने कौन समझे जी का हाल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ