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नज़्म
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दस्त-ए-दौलत-आफ़रींं को मुज़्द यूँ मिलती रही
अहल-ए-सर्वत जैसे देते हैं ग़रीबों को ज़कात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
काटती है सेहर-ए-सुल्तानी को जब मूसा की ज़र्ब
सतवत-ए-फ़िरऔन हो जाती है अज़ ख़ुद ग़र्क़-ए-आब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
हमारी ही तरह जो पाएमाल-ए-सतवत-ए-मीरी-ए-ओ-ए-शाही में
लिखोखा आबदीदा पा-पियादा दिल-ज़दा वामाँदा राही हैं
मजीद अमजद
नज़्म
था दिमाग़-ओ-दिल में सहबा-ए-क़नाअत का सुरूर
थी जवाब-ए-सतवत-ए-शाही तिरी तब-ए-ग़यूर
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
हर ज़बाँ-आवर जहाँ थक जाए जिस के ज़िक्र से
जिस की सतवत का बयाँ बाहर हो सब की फ़िक्र से