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नज़्म
बहार-ए-रंग-ओ-शबाब ही क्या सितारा ओ माहताब ही क्या
तमाम हस्ती झुकी हुई है, जिधर वो नज़रें झुका रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
ख़ून-ए-दिल देना पड़ा ख़ून-ए-जिगर देना पड़ा
अपने ख़्वाबों की हसीं परछाइयाँ देना पड़ीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
मैं ख़ुद हूँ आबला-पा कम-नसीब ख़ाक-बसर
है मेरी बज़्म फ़रोज़ाँ ब-फ़ैज़-ए-दाग़-ए-जिगर
बनो ताहिरा सईद
नज़्म
जिसे फ़न कहते आए हैं वो है ख़ून-ए-जिगर अपना
मगर ख़ून-ए-जिगर क्या है वो है क़त्ताल-तर अपना
जौन एलिया
नज़्म
ये वो बिजली थी तुझे जिस के असर ने फूँका
रफ़्ता रफ़्ता तपिश-ए-सोज़-ए-जिगर ने फूँका
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
फिर वही ख़्वाब-ए-सहर ले के चले हैं हम लोग
मशअ'ल-ए-ख़ून-ए-जिगर ले के चले हैं हम लोग
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
उस को तो 'आतिश'-ओ-'सौदा' ने किया है सज्दा
'जोश'-ओ-'इक़बाल'-ओ-'जिगर' उस के सना-ख़्वाँ हैं तो क्या
हिलाल रिज़वी
नज़्म
तू ने की तख़्लीक़ ऐ महव-ए-ख़िराम-ए-जुस्तुजू
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर से काएनात-ए-रंग-ओ-बू