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नज़्म
क्या साज़ जड़ाओ ज़र-ज़ेवर क्या गोटे थान कनारी के
क्या घोड़े ज़ीन सुनहरी के क्या हाथी लाल अमारी के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
साज़िशें लाख उड़ाती रहीं ज़ुल्मत की नक़ाब
ले के हर बूँद निकलती है हथेली पे चराग़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये भीगा हुआ गर्म ओ तारीक बोसा
अमावस की काली बरसती हुई रात जैसे उमड़ती चली आ रही है
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
ऐ वतन जोश है फिर क़ुव्वत-ए-ईमानी में
ख़ौफ़ क्या दिल को सफ़ीना है जो तुग़्यानी में
जोश मलीहाबादी
नज़्म
दामन-ए-तीरीकी-ए-शब की उड़ाती धज्जियाँ
क़स्र-ए-ज़ुल्मत पर मुसलसल तीर बरसाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दिल हमारे याद-ए-अहद-ए-रफ़्ता से ख़ाली नहीं
अपने शाहों को ये उम्मत भूलने वाली नहीं