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नज़्म
नए उनवान से ज़ीनत दिखाएँगे हसीं अपनी
न ऐसा पेच ज़ुल्फ़ों में न गेसू में ये ख़म होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दफ़्न हैं इस में मोहब्बत के ख़ज़ाने कितने
एक उन्वान में मुज़्मर हैं फ़साने कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
तुझ से जो मैं ने प्यार किया है तेरे लिए? नहीं अपने लिए
वक़्त की बे-उनवान कहानी कब तक बे-उनवान रहे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
उत्तर दक्खिन पूरब पच्छिम हर सम्त से इक चीख़ आती है
नौ-ए-इंसाँ काँधों पे लिए गाँधी की अर्थी जाती है
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
सुरूर बाराबंकवी
नज़्म
आख़िर इंसान हूँ मैं भी कोई पत्थर तो नहीं
मैं भी सीने में धड़कता हुआ दिल रखता हूँ
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
ब-हर-उनवाँ यही इक पेशवा-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी है
ग़लत है एशिया में मोरिद-ए-इल्ज़ाम है उर्दू