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नज़्म
मिटाया क़ैसर ओ किसरा के इस्तिब्दाद को जिस ने
वो क्या था ज़ोर-ए-हैदर फ़क़्र-ए-बू-ज़र सिद्क़-ए-सलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ितना-ए-फ़र्दा की हैबत का ये आलम है कि आज
काँपते हैं कोहसार-ओ-मुर्ग़-ज़ार-ओ-जूएबार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मेरे कान में ये नवा-ए-हज़ीं यूँ थी जैसे
किसी डूबते शख़्स को ज़ेर-ऐ-गिर्दाब कोई पुकारे!
नून मीम राशिद
नज़्म
तिरे ज़ेर-ए-नगीं घर हो महल हो क़स्र हो कुछ हो
मैं ये कहता हूँ तू अर्ज़-ओ-समा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब साज़-ए-अज़ल की फ़ुग़ाँ
जिस से दिखाती है ज़ात ज़ेर-ओ-बम-ए-मुम्किनात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरी बिगड़ी हुई तक़दीर को रोती है गोयाई
मैं हर्फ़-ए-ज़ेर-ए-लब शर्मिंदा-ए-गोश-ए-समाअत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क़ल्ब-ए-इंसानी में रक़्स-ए-ऐश-ओ-ग़म रहता नहीं
नग़्मा रह जाता है लुत्फ़-ए-ज़ेर-ओ-बम रहता नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
न पैदा होगी खत-ए-नस्ख़ से शान-ए-अदब-आगीं
न नस्तालीक़ हर्फ़ इस तौर से ज़ेब-ए-रक़म होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ज़ेर-ए-लब अर्ज़ ओ समा में बाहमी गुफ़्त-ओ-शुनूद
मिशअल-ए-गर्दूं के बुझ जाने से इक हल्का सा दूद