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नज़्म
फ़ितना-ए-फ़र्दा की हैबत का ये आलम है कि आज
काँपते हैं कोहसार-ओ-मुर्ग़-ज़ार-ओ-जूएबार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब साज़-ए-अज़ल की फ़ुग़ाँ
जिस से दिखाती है ज़ात ज़ेर-ओ-बम-ए-मुम्किनात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क़ल्ब-ए-इंसानी में रक़्स-ए-ऐश-ओ-ग़म रहता नहीं
नग़्मा रह जाता है लुत्फ़-ए-ज़ेर-ओ-बम रहता नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
किसी को इस तग़य्युर का न हिस होगा न ग़म होगा
हुए जिस साज़ से पैदा उसी के ज़ेर-ओ-बम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
रात आख़िर हुई और बज़्म हुई ज़ेर-ओ-ज़बर
अब न देखोगे कभी लुत्फ़-ए-शबाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
मग़रिब ओ मशरिक़ नज़र आने लगे ज़ेर-ओ-ज़बर
इंक़लाब-ए-हिन्द है सारे जहाँ का इंक़लाब
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
मिट गए थे उस की तहरीरों के सब ज़ेर-ओ-ज़बर
मैं ने स्टेटस की ख़ातिर कर तो ली शादी मगर
खालिद इरफ़ान
नज़्म
मैं तुम्हारी रूह की अंगड़ाइयों से आश्ना हूँ
मैं तुम्हारी धड़कनों के ज़ेर-ओ-बम पहचानता हूँ
महबूब ख़िज़ां
नज़्म
रात आख़िर हुई और बज़्म हुई ज़ेर-ओ-ज़बर
अब न देखोगे कभी लुत्फ़-ए-शबाना हरगिज़